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कुलगीत
है ज्ञान चक्षु खुलते, प्रांगण में जिसके आकर
सत्कर्म वृत्ति मिलती, सन्निध्य जिसका पाकर ।
जिसकी प्रतिध्वनि से, विद्या का फूल खिलता
नव-ज्ञान नव-दिशा का, आलोक है बिखरता ।।
नारी की पूर्णता यह, वरदान सरस्वती का
उर के तिमिर में जैसे, अंगड़ाई भारती का ।
कौशल-कला जलधी है, बेटी का है यह गौरव
उत्थान को है समर्पित, संधान है ये अभिनव ।।
यह सिद्धपीठ काशी, यह ज्ञानपीठ काशी
तुलसी कबीर लक्ष्मी, सावित्री की ये थाती ।
समभाव सत्य सेवा, सम्मान सब सिखाती
सुन्दर सुगम्य शिक्षा, शुभ लक्ष्य ये बताती ।।
यहाँ सत्य ज्ञान मिलता, यहाँ कर्म ज्ञान मिलता
गीता के भाव मिलते, बाईबल कुरान मिलता ।
आँगन में इसके आकर, व्यक्तित्व है निखरता
जीने की दृष्टी मिलती, जीवन का ज्ञान मिलता ।।
यह राजकीय गौरव, यह ज्ञान गंग धारा
यह देवशिल्पी रचना, यह प्राण है हमारा ।
सद्भाव सुमन लेकर, संकल्प शुभ करेंगे
ज्ञानार्थ हम मिलेंगे, सेवार्थ हम चलेंगे ।।